मैं और
मेरी चाय
चाय कोई
पदार्थ या पेय नहीं है | चाय एक सोच है – एक मानसिकता है | तूफ़ान हो या संघर्ष चलो
एक कप चाय पीते हैं और कुछ न कुछ तो होगा – उत्तर मिलेंगे – स्थिति सुधरेगी |
उत्सव है या प्रसन्नता है चलो एक कप चाय पीते हैं और इस दुनिया को और भी बेहतर कर
देते हैं | क्यूंकि चाय एक कप नहीं – चाय जीवन है |
कुछ ऐसा
ही है स्वाद ओम शुक्ला की पुस्तक “ मैं और मेरी चाय “ का| जब ये किताब हाथ में ई तब ये गुमान भी न
था के ये इस तरह मेरे अनुभव का एक हिस्सा बन जाएगी | कहीं न कहीं सिमर और अमन में
मैं आजकल के युवाओं का पल पल बदलता प्रेम देख पाऊँगी या फिर काव्या की करुण पुकार
में मैं उन हजारों लड्कियों की सिसकियाँ सुन पाउंगी जो कामांध पुरुषों का दिन
प्रतिदिन शिकार बनती हैं| क्या राजिव और श्रेया आज के महानगरों में पिसते
उन युवाओं का प्रतिनिधित्व नहीं करते जो अर्थ और अनर्थ का भेद भूलते जा रहे हैं? सागर और खुशी की कहानी
नहीं कही लेखक ने अपितु अलाहाबाद बसा दिया दिल में |
My chance
encounter with Om Shukla’s book is a pleasant surprise which is never to be forgotten
experience. Reasons being many including my native place being Allahabad I toured
the place through his words. This book is a must read for all those who believe
in the charisma of everyday significant and non significant moments of our
life. Grab your copies of this ginger flavoured tea and traverse the memory
lanes of your yester years. What good it would have been if there was an index
pointing out page numbers of different stories ?

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